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उलझन / समझदार किसिम के लोग / लालित्य ललित
Kavita Kosh से
उलझने से सुलझती नहीं चीजें
और
बिगड़ जाती हैं
और
तुम्हें पता है
कि मुझे
उलझना कहीं भी पसंद नहीं है
तो तुम ऐसे काम ही क्यों करती हो
कि
मैं
तुम्हारी उलझनों को
सुलझाता रहूँ
कभी भी कुछ भी करो
लेकिन ऐसे करो
कि
उलझने की नौबत ही ना आएं
वरना
सुलझते सुलझाते रह
जाओगी
इस गुत्थम-गुत्था होती जिंदगी से