उलझा हूँ अपने आप में सुलझाऊँ किस तरह
इतने ग़मों की भीड़ में मुस्काऊँ किस तरह
मैंने कभी ज़मीर का सौदा नहीं किया
मुझ को ख़रीदता है वो बिक जाऊँ किस तरह
तू ही बता ए ज़िंदगी आखि़र मैं क्या करूँ
आती नहीं है मौत तो मर जाऊँ किस तरह
रहता है मेरे दिल में तो महबूब ही मेरा
सीना मैं अपना चीर के दिखलाऊँ किस तरह
कैसे किसी की हाँ में मिलाता रहूँ मैं हाँ
जो सच है दोस्तो उसे झुठलाऊँ किस तरह