उलहन / चन्द्रमणि
बाबा विद्यापति दुखिया के पतिया
मनसँ पढ़बै ना-3
पहिले पहिल लिखै छी चिट्ठी
रहलौं व्यथा उतारि (बाबा)
बाबू भइया कहि कहि सिखलौं
क-ट आखर चारि
लछमी बिन विद्या अछि दुर्लभ
सै दै छी परचारि
गलती किछु नै धरबै ना।। (बाबा)
रूपमति भऽ अयलौं जगमे
लछमी देलनि बारि (बाबा)
जगभरि केर उलहन सुनैत अछि
निर्धन-सुता कुमारि
कोन देशमे होइत‘ छि बाबा
देवी रूपा नारि
उतारा अहीं पठेबै ना (बाबा)
निर्धन कानमे सोना पित्तर
धनिकक पित्तर सोन (बाबा)
गुदड़ीमे गुण-आगरि पाथै
गोइठा कोने कोन
माय चिंतामे पिता टोहमे
वर ले बाधे बोन
कते अपमान सहेबै ना।। बाबा.....
दिन गनि-गनिकऽ चुलहा जकरा
घरमे जरल करै छै
साँझक लेसल डिबिया, भरि
साँझो ने बरल करै छै
बूझि अयाची अपनाकें जे
भूखल रहल करै छै
टाका कोनाकऽ गनतै ना। बाबा...