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उलाहना / मोहन सगोरिया

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महसूस करने और तुम्हें देखने के बीच
कितनी ही युवतियों से प्रेम किया मैंने
माँ और बहिन से की बातें
उसी अंतरंगता से
तुम्हारा न होना खला मुझे

तुम्हारा होना तुम्हारे न होने में था
और जब तुम थीं तो एहसास नहीं होता मौज़ूदगी का

चुना जीवन तुमने जो
नहीं था कुछ उसमें चुनाव तुम्हारा
क्षणों को युगों की तरह
और युगों को क्षणों की तरह जिया
कि हर क्षण वर्तमान जैसे

मेरा अतीत वह पठार
जहाँ से तुम्हारा अतीत
दीखता
साफ़-साफ़
वर्तमान अतीत की तरह

तुम्हारा अतीत वर्तमाब नहीं हो सका
खो गई पहचान-सी साँस।