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उल्कापात / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
जब गिरता है भू पर तारा !
आँधी आती है मीलों तक अपना भीषणतम रूप किये,
सर-सर-सी पागल-सी गति में नाश मरण का कटु गान लिये,
यह चिन्ह जता कर गिरता है
तीव्र चमक लेकर गिरता है,
यह आहट देकर गिरता है,
यह गिरने से पहले ही दे देता है भगने का नारा !
जब गिरता है भू पर तारा !
हो जाते पल में नष्ट सभी भू, तरु, तृण, घर जिस क्षण गिरता,
ध्वंस, मरण हाहाकारों का स्वर, आ विप्लव बादल घिरता,
दृश्य - प्रलय से भीषणतर कर,
स्वर - जैसा विस्फोट भयंकर,
गति - विद्युत-सी ले मुक्त प्रखर,
सब मिट जाता बेबस उस क्षण जग का उपवन प्यारा-प्यारा !
जब गिरता है भू पर तारा !