उल्टा ज़माना / अरुण कमल
ऎसा ज़माना आ गया है उल्टा
कि कोई तुम्हें रास्ता बताए तो
शक करो
वह तुम्हें लूट सकता है सुनसान पाकर
कोई तुम्हें रात में सोने की जगह दे तो सोचो
तुम्हारा ख़ून कर सकता है चुपचाप
और लाश आंगन में गाड़ देगा
दुकानदार यदि पीने को चाय दे
तो समझो कि ठगने की ताक में है
थानेदार कभी हँसते हुए कंधे पर हाथ दे
तो तय है किसी दफ़ा में फँसने वाले हो
क्या करोगे, समय ऎसा है कि
कोई भलाई भी करे तो सोचना पड़ता है
ख़ुश होने की बात नहीं
थोड़ा सोचने का काम है
तुम्हारे गाँव तक यह सरकार जो दो हफ़्ते में
पक्की सड़क बनवा रही है
ख़ुश मत हो कि इस पर चलेंगी गाड़ियाँ
और तुम घंटे-आधे घंटे में शहर पहुँच जाओगे
और खाने के वक़्त तक
वापस घर लौट आओगे
यह भी सोचो कि इसी से होकर
मिनट भर में पहुँचेगी सरकारी फ़ौज
और तुम्हारा गाँव राख बन जाएगा।