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उल्लास का तब आप में अतिरेक होता है / राजेन्द्र गौतम
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उल्लास का तब आप में अतिरेक होता है।
जब एक अन्धी भीड़ में अभिषेक होता है।
चाहे किसी भी हैसियत से इस सभा में हो
पर कुर्सियों की दौड़ मे प्रत्येक होता है।
जो तालियों की गड़गड़ाहट में मुखर होता
वह दिग्भ्रमित इतिहास का अविवेक होता है।
इस मँच से विरुदावली का पाठ तो होता
पर अर्थ में अन्वय नहीं, व्यतिरेक होता है।
जिन हड्डियों पर सभ्यता की नींव उठती है
विश्वास उनका ही यहाँ अनिकेत होता है।
22-06-1981