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उषाकाल / ‘हरिऔध’

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है विभु केश कलाप रक्त कुसुमावलि अर्चित।
या है भव असितांग लाल चन्दन से चर्चित।
हनित प्रात दनुजात रुधिार धारा दिखलाई।
या प्राची दिग्वधू बदन पर लसी ललाई।
प्रकृति सुन्दर कलित कपोल हुआ आरंजित।
या है जग जीवन सनेह जगती कृत व्यंजित।
ललित कला है किसी कलामय की अति प्यारी।
या पसरी है लाल लाल सुर ललना सारी।
तम में मंजुल कान्ति रजोगुण को निवसी है।
या शनि मंडल मधय भूमि सुत विभा वसी है।
बही जलधि के नील सलिल में गैरिक धारा।
या है असित वितान सुरंजित बसन सँवारा।
प्यारी रंगत अनुराग की रुचिर श्यामता में बसी।
या प्रात:कालिक लालिमा गगन नीलिमा में लसी।