भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उषा / अलिकसेय ख़मिकोफ़ / अनिल जनविजय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिन और रात के बीच

ईश्वर ने तुम्हें बनाया
एक सनातन परिधि की तरह
आँच के नीललोहित वस्त्र पहनाए
और साथी के रूप में सहचरी दी ।

जब नीले आसमान में
चुपचाप तुम चमकती हो, प्रिया !
तुम्हें देख मैं सोचता हूँ –

हे उषा  !
तुम्हारी ही तरह हैं हम –
अग्नि और शीत का घोल
स्वर्ग और नरक का झोल
प्रकाश और तम का हिल्लोल ।

मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी में पढ़िए

       Алексей Хомяков
                ЗАРЯ

Тебя меж нощию и днем

Поставил бог, как вечную границу,
Тебя облек он пурпурным огнем,
Тебе он дал в сопутницы денницу.

Когда на небе голубом
Ты светишь, тихо дорогая, -
Я мыслю, на тебя взирая:

Заря!
Тебе подобны мы-
Смешенье пламени и хлада,
Смешение небес и ада,
Слияние лучей и тьмы.

1825 г.