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उषे, बतला यह सीखा हास कहाँ / रामकुमार वर्मा
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उषे, बतला यह सीखा हास कहाँ?
इस नीरस नभ में पाया है
तूने यह मधुमास कहाँ?
अन्धकार के भीतर सोता--
था इतना उल्लास कहाँ?
सूने नभ में छिपा हुआ था
तेरा यह अधिवास कहाँ?
यदि तेरा जीवन जीवन है
तो फिर है उच्छ्वास कहाँ?
अपने ही हँसने पर तुझको
क्षण भर है विश्वास कहाँ?