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उष्ण हुआ धरती का मन / रंजन कुमार झा

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क्रुद्ध हुआ है सूर्य गगन में
उष्ण हुआ धरती का मन

पेड़ सभी मिट रहे धरा से
तुनुकमिजाजी मनु बन बैठे
तनिक न चिंता जीव-जगत की
सब अपने-अपने में ऐंठे
प्रगति-पंथ ने क्या लूटा है
करना होगा यह चिंतन

साल-साल दर बढ़ती जाती
सही न जाती है अब गर्मी
फिर भी कोई नहीं चेतना
मानव चित हो गया विधर्मी
स्वार्थ-सिद्धि को कंटक बोए
अब भी तो हो सही जतन

ऐसे ही हालात बुरे हैं
उसपे तपकर फसल जल रही
घाव बहुत गंभीर मिलेंगे
अगर न सोचा गलत क्या सही
जीवन रह पाए धरती पर
करें समस्या का मंथन