भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उसका अपना ही करिश्मा है फ़सूँ है, यूँ है / फ़राज़
Kavita Kosh से
यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
उसका अपना ही करिश्मा है फ़सूँ है, यूँ है
यूँ तो कहने को सभी कहते है, यूँ है, यूँ है
जैसे कोई दर-ए-दिल हो पर सिताज़ा कब से
एक साया न दरू है न बरू है, यूँ है,
तुमने देखी ही नहीं दश्त-ए-वफा की तस्वीर
चले हर खार पे कि कतरा-ए-खूँ है, यूँ है
अब तुम आए हो मेरी जान तमाशा करने
अब तो दरिया में तलातुम न सकूँ है, यूँ है
नासेहा तुझको खबर क्या कि मुहब्बत क्या है
रोज़ आ जाता है समझाता है, यूँ है, यूँ है
शाइरी ताज़ा ज़मानो की है मामर 'फ़राज़'
ये भी एक सिलसिला कुन्फ़े क्यूँ है, यूँ है, यूँ है