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उसका हरापन / प्रदीपचन्द्र पांडे
Kavita Kosh से
सूखी लकड़ी
दिन-रात
पड़ी रही पानी में
फिर भी
हरी नहीं हुई
गल गई
धीरे-धीरे
पानी के ऊपर
तैरने लगा
उसका हरापन !