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उसकी आवाज एक उत्सव है / रेखा चमोली
Kavita Kosh से
सुबह की हडबडी में
एक कप चाय जैसी उसकी आवाज
थकी दोपहरी में
हौले से दरवाजा खोल
हालचाल पूछती
कभी कभार
सोते हुए थपथपाती
जहाँ-जहाँ नहीं होता वो साथ मेरे
होती उसकी आवाज
खुशी में चहकती
उत्साह में खनकती
दुख और उदासी में बेचैन होती
नाराजगी में लुडकती हुयी सी
कैसे भी करके
मुझ तक पहुँच ही जाती
जब कुछ नहीं सुन पाती मैं
सुन पाती हूँ
उसकी आवाज
उसकी आवाज पहचानते हैं
मेरे कपडे ,बर्तन ,घर ,किताबें ,रास्ते
मेरे जबाब न देने पर
बतियाने लगते हैं उससे
उसे क्या पता
एक उसकी आवाज के सहारे ही
चल रही है सारी दुनिया