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उसकी तबियत खराब है / मदन गोपाल लढ़ा
Kavita Kosh से
आँखों में जलन है,
गले में खराश है।
हवा इतनी भारी है यहाँ
कि बोल फूटते नहीं
अन्दर ही अन्दर
फुसफुसा कर रह जाते हैं
उसके अधर।
सुनसान रात है
मगर नींद गायब है,
अंधेरा इतना घना है
कि दूर तक नहीं दिखता
कहीं कोई सपना।
दांत भिंचते भी है कभी-कभी
मगर न जाने क्यों
मुट्ठीयां तानने से पहले
ढीले पड़ जाते हैं हाथ।
लगता है
उसकी तबीयत खराब है
इन दिनों।