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उसकी दुनिया / हरीश करमचंदाणी

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उसकी दुनिया दूसरी थी
औरो से अलग
उसमे सपने थे
खूशबू थी
हँसी थी
सफ़ेद कबूतर थे
और भोले खरगोश भी