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उसकी बांहों में / राजेन्द्र जोशी
Kavita Kosh से
पुतला नहीं
आदमी मरा पड़ा है
बीच बाजार
कितने दिनों से
न मैं रोया
न वह रोयी
पर मैं प्यासा
और भूखा हँू
मेरी प्यास और भूख
मिटाने की खातिर
उसे दिखाता हूँ
ग़म नहीं अब उसके मरने का
चिन्ता मत करो उसके मरने की
और उसको उठाने की
अगर हो पैसे उसको दफनाने के
तो उन पैसों से
पहले मेरी प्यास
और भूख मिटे
उसकी बाँहों में