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उसके ऊपर मरते हैं / हरि फ़ैज़ाबादी

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उसके ऊपर मरते हैं
आप और क्या करते हैं

करते हैं जब भूल बड़े
बच्चे आहें भरते हैं

कब तक कोई राह तके
जब वो रोज़ मुकरते हैं

अक्सर तेज़ हवाओं में
हल्के दर्द उभरते हैं

शायद वो ये भूल गये
सबके ग्राफ़ उतरते हैं

जहाँ दिखावा होता है
रिश्ते वहीं बिखरते हैं

गै़र नसीहत देते हैं
अपने तभी सुधरते हैं