उसके दर से जबीन का रिश्ता
जैसे पानी से मीन का रिश्ता
रब से कैसा गिला ,शिकायत क्या
उससे तो है यक़ीन का रिश्ता
बढ़ गईं मुश्किलें बढ़ा जब से
आदमी से मशीन का रिश्ता
क्या कभी निभ सका है दुनिया में
जाहिलों से ज़हीन का रिश्ता
किस क़दर पुर-कशिश-सा होता है
साँप का और बीन का रिश्ता
जिस्म से रूह का है रिश्ता वो
जो मकां से मकीन का रिश्ता
साथ रहता है आख़िरी दम तक
ज़िंदगी से ज़मीन का रिश्ता
एक दूजे के बिन अधूरा है
शायरी,सामईन का रिश्ता
है मुक़द्दस अज़ल से ही ‘मधुमन ‘
आदमी और दीन का रिश्ता