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उसके बदन की ख़ुशबू / शिव रावल

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उसके बदन की ख़ुशबू चुरा लाए थे हम
तिशनगी सताए तो ख़्वाबों-ख़्यालों को महकाने के काम आती है

घर के दर-ओ-दीवारों के दरमियाँ ही गुम जाता हूँ मैं अक़्सर
उन हालातों में ये मुझे ढूँढ लाने के काम आती है

मुद्दतों जैसे लगने लगते हैं जब यह दिन-रात कभी तुम बिन
बेखुदी की उस सूरत में ये तसव्वुर के चराग़ जलाने के काम आती है

 कभी-कभी आसपास में मौजूद सब रिश्ते चुभने लगते हैं काँटों की तरह
तेरी ख़ुशबू खिले फूलों की महक-सी मुरझाए दिल को बहलाने के काम आती है