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उसके सभी ग़मों का वो गुच्छा ख़रीद कर / आदर्श गुलसिया
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उसके सभी ग़मों का वह गुच्छा ख़रीद कर
मैंने उड़ाया तोते का बच्चा ख़रीद कर
दौलत कि वह हनक में ना फूला समा रहा
सबसे अलग मज़ार पर सज़दा ख़रीद कर
सहमे न क्यों ग़रीब ही शादी में बिन्त की
आखिर ग़रीब बिकता है रिश्ता ख़रीद कर
अपना ग़ुलाम बनने पर मज़बूर कर दिया
ज़रदार ने सभी का निवाला ख़रीद कर
दिल कहता ज़िन्दगी को अभी गुनगुनाउँ और
सांसो का अब कहीं से भी हुक्का ख़रीद कर
एहसास तो हुआ था बहुत देर में मगर
अपनी वफ़ा के बदले में धोखा ख़रीद कर
वादे उधार करके दिए नक़द में ही ग़म
यूँ ले गया वह दिल मेरा सस्ता ख़रीद कर
ख़ुद को करेगा फिट किसी किरदार में ही वो
लेकर गया है साथ जो किस्सा ख़रीद कर
रहते तमाम लोग तो 'आदर्श' आसपास
पैसे के दम पर अपना जो रुतबा ख़रीद कर