भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उसको तो बस जाना था / सिया सचदेव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उसको तो बस जाना था
तुझे मुबारक दुनिया तेरी
जो है ज़िम्मेवारी तेरी
वो जो तेरे अपने है
उनके भी कुछ सपने है
अपना क्या है रह लेंगे
ग़म शेरों में कह लेंगे
हम दिल को बहला लेंगे
ये कह कर समझा लेंगे
जिसको अपना माना था
वो तो इक बेग़ाना था
उसने कहाँ निभाना था
उसको तो बस जाना था