उसको देखा था, उसका डर देखा
आज हथियार उसके घर देखा
इतना दहशतज़दा था मैं उस रात
ख़्वाब भी चौंक-चौंक कर देखा
उस जली बेकसों की बस्ती में
ख़ाक के ढेर में शरर देखा
उसमें तूफ़ान जज़्ब थे लाखों
उसके भीतर जो इक भँवर देखा
आदमी की हवेलियाँ देखीं
आदमीयत का खण्डहर देखा
काश ये गुत्थियाँ सुलझ जातीं
हमने ऐसा भी चाह कर देखा