भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उसको धोखा कभी हुआ ही नहीं / विजय वाते
Kavita Kosh से
उसको धोखा कभी हुआ ही नहीं ।
उसकी दुनिया में आईना ही नहीं ।
उसकी आंखों में ये धनक कैसी,
उसका रंगों से वास्ता ही नहीं ।
उसने दुनिया को खेल क्यों समझा,
घर से बाहर तो वो गया ही नहीं ।
सबकी खुशफहमियां बढाता है,
आईना सच तो बोलता ही नहीं ।
आसमानों का दर्द क्या जानें,
उसके तारा कभी चुभा ही नहीं ।
तुम उसे शे'र मत सुनाओ 'विजय',
शब्द के पार जो गया ही नहीं