भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उसको धोखा कभी हुआ ही नहीं / विजय वाते

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उसको धोखा कभी हुआ ही नहीं ।
उसकी दुनिया में आईना ही नहीं ।

उसकी आंखों में ये धनक कैसी,
उसका रंगों से वास्‍ता ही नहीं ।

उसने दुनिया को खेल क्‍यों समझा,
घर से बाहर तो वो गया ही नहीं ।

सबकी खुशफहमियां बढाता है,
आईना सच तो बोलता ही नहीं ।

आसमानों का दर्द क्‍या जानें,
उसके तारा कभी चुभा ही नहीं ।

तुम उसे शे'र मत सुनाओ 'विजय',
शब्‍द के पार जो गया ही नहीं