उसने आंखों को अपनी दीद न दी
दिल लिया पर कोई रसीद न दी
ग़म की ख़ैरात बाँटता ही रहा
खुशी कोई भी तो खरीद न दी
इतनी तरीकियाँ दीं रातों को
इन निगाहों को कोई ईद न दी
राह मंजिल की दिखा दी उसने
रूह कोई मगर मुरीद न दी
बात गर्दिश की बताई फिर भी
बच के रहिये यही ताक़ीद न दी