भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उसने कहा था / सुदर्शन रत्नाकर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उसने कहा था
वह लौट कर आएगा
और वह आ गया
मधुमास
वृक्षों ने पीले वस्त्र उतार दिए हैं
नई कोंपलों ने किया है
उसका स्वागत
पक्षी चहचहाने लगे हैं
पीली दूब ने सिर उठाना शुरु
कर दिया है
कह रही हो जैसे
हर चुनौती को स्वीकार करो
संहार है तो सर्जन भी है
मिटने के बाद ही कुछ प्रतिलिपित होता है।
अब कोहरे का क़हर नहीं रहा
आसमान साफ़ होने लगा है
तारों का टिमटिमाना और लहरों के
 नर्तन का सौन्दर्य, कराता है
मन में अपार शांति का बोध
कोयल की कुहू-कुहू
बौर की महक
भर देती है मन में उमंग
कलियों का मुस्कुरा कर आँखें खोलना
धरा की कोख से रंगों का उत्पन्न होना
मधुमास तुम्हीं तो लाए हो
परी-सी तितलियाँ अपने साथ
ज्यों रंगों की बरसात
भँवरों की गुँजार

तुम आते हो तो
जग जाती है सब की आस
बुझती विरहिणी धरा की प्यास
रुकना, जादूगर
अभी मत जाना मधुमास।