भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उसने कहा / नूपुर अशोक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहा था मैंने
हद की हद मत पार करो
मौन मेरी हार नहीं
उसे मखौल मत बनाओ
कहा था मैं ने बिना कहे
पर तुम निर्लिप्त, तुम स्वकेंद्रित
तुम संवेदनशून्य रहे
अपनी धुन में चलते रहे
हद से हद तक बढ़ते रहे
स्नेह था मेरा, मेरा मौन
दबकर सड़कर बना मवाद
अब निकली है मेरी चीख
अब निकला है मेरा गुबार
अब हदें तोड़ दी हैं मैंने भी
तोड़ दिये हैं सारे पाट
अब चलो बह चलें हम अबाध
तुम अपनी चलो
मैं अपनी चलूँ
अब किस बंधन का आधार
अब किस बंधन का आधार!