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उसने कितनी सादगी से आज़माया है मुझे / दीप्ति मिश्र
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उसने कितनी सादगी से आज़माया है मुझे
है मेरा दुश्मन मगर मुन्सिफ़ बनाया है मुझे
मैं भला उस शख़्स की मासूमियत को क्या कहूँ
कहके मुझको इक लुटेरा घर बुलाया है मुझे
उसके भोलेपन पर मिट न जाऊँ तो मैं क्या करूँ
किस कदर नफ़रत है मुझसे यह बताया है मुझे
मुझको उसकी दुश्मनी पे नाज़ क्यों न हो कहो
है भरोसा मुझपे ज़ालिम ने जताया है मुझे
वो कोई इल्ज़ाम दे देता मुझे तो ठीक था
उसकी चुप ने और भी ज़्यादा सताया है मुझे