भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उसने जब जब भी मुझे दिल से पुकारा मोहसिन / मोहसिन नक़वी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उसने जब जब भी मुझे दिल से पुकारा मोहसिन
मैंने तब तब यह बताया के तुम्हारा मोहसिन

लोग सदियों की खताओं पे भी खुश बसते हैं
हमको लम्हों की वफाओं ने उजाड़ा मोहसिन

जब आगया हो ये यकीन अब वोह नहीं आयेगा
गम और आंसू ने दिया दिल को सहारा मोहसिन

वोह था जब पास तो जीने को भी दिल करता था
अब तो पल भर भी नहीं होता गुज़ारा मोहसिन

उसको पाना तो मुक़द्दर की लकीरों में नहीं
उसका खोना भी करें कैसा गवारा मोहसिन