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उसने जब भी ये सिर झुकाया है / भावना
Kavita Kosh से
उसने जब भी ये सिर झुकाया है
मेरे घावों को चैन आया है
इन अंधेरों से चोट खाते ही
रात ने चांद को बुलाया है
गैर को था हमेशा मुझपे यकीं
मुझको अपनों ने आजमाया है
मैंने मांगा था सिर्फ इक मोती
वो समुन्दर खंगाल लाया है
भूख का रूप आप क्या जानें
आपने पेट भरके खाया है
चन्द दौलत जो हाथ में आयी
उसके घर जश्न का ही साया है
सच की नैया में झूठ बैठा तो
लफ्ज़ सच का भी लड़खड़ाया है