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उसने जो आज बहुत खुद को सजाया होगा / शोभा कुक्कल

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उसने जो आज बहुत खुद को सजाया होगा
कोई परदेस से घर लौट के आया होगा

आज माहौल है नमनाक किसी विरहन ने
दर्द में डूबा हुआ गीत सुनाया होगा

फेर कर मुंह को मुक़ाबिल से गुज़रने वाला
बिल यकीं अपना नहीं कोई पराया होगा

फिर पढ़ा होगा बड़े शौक़ से उसने ख़त को
पहले ख़त उसने तो आंखों से लगाया होगा

शाख़ यूँ ही तो नहीं झूम रही है शोभा
शाख़ को गीत पपीहे ने सुनाया होगा