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उसने पूछा था निशानी में वो क्या दे मुझको / पूजा बंसल

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उसने पूछा था निशानी में वो क्या दे मुझको
‘बस जुदाई से ज़रा पहले जला दे मुझको’

बेवफ़ाई तेरी आसान किये देती हूँ
कोई इल्ज़ाम लगा मुझ पे भुला दे मुझको

हर कहानी में ही किरदार बहुत होते हैं
रख ले क़िस्सों में जरा बाक़ि मिटा दे मुझको

गर समझता है ख़तावार तो मौक़ा है यहीं
क़त्ल तक माफ़ किया सब,तू सज़ा दे मुझको

बात ही बात में बातों को बदलने का हुनर
मौसमी राब्ता रखना ही सिखा दे मुझको

तुझसे गर वास्ता कोई भी नहीं है मेरा
अपने अहसास के पन्नों से मिटा दे मुझको

मेरा वो ख़्वाब हक़ीक़त मैं समझती हूँ जिसे
अर्श से फ़र्श पे लाकर न गिरा दे मुझको

बंद हो जाए तेरी यादों की आमद दिल से
दुश्मन ए जाँ कोई ऐसी भी दुआ दे मुझको