उसने रुकना नहीं सीखा / रश्मि भारद्वाज
गले तक आ चुका पानी
आ सकता है कभी भी नाक के ऊपर और बन्द हो सकती हैं साँसें
वह बहती जाती है फिर भी
धारा के साथ
धारा के बीच
उसे तैरना नहीं आता
किसी चील-सी अक्सर झपट्टा मारती है ज़िन्दगी
और पंजों में लेकर छोड़ देती है
पहाड़ की सबसे ऊँची चोटी से नीचे
कस कर पकड़ती है वह आख़िरी इच्छा-सी मिली एक पेड़ की डाल
किसी भी पल छूट सकता है अवलम्ब
सरकती हथेलियाँ दर्द से बेहाल हैं
पैर अधर में लटके हैं और नीचे है खाई
उड़ सकने की कला नहीं मिली है विरासत में
देवताओं की कथा के बीच भूल जाती है कि देना है हुँकारा
इंसानी पलकें झिप जाती हैं नीन्द से
उसके हिस्से की मुक्ति पर नाम लिखा है किसी और का
दान मे मिला अमरत्व सहेज पाना भी एक कला है
हथेलियों की अबूझ रेखाओं में
नहीं होते हैं भविष्य के आखर
लेकिन पैरों के वलयों में लिखी होती है ज़िन्दगी
जो पढ़ा तो जाना
वहाँ रुकना नहीं लिखा