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उससे बिछड़ के दिल का अजब माजरा रहा / अनवर जलालपुरी
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उससे बिछड़ के दिल का अजब माजरा रहा
हर वक्त उसकी याद रही तज़किरा रहा
चाहत पे उसकी ग़ैर तो ख़ामोश थे मगर
यारों के दर्म्यान बड़ा फ़ासला रहा
मौसम के साअथ सारे मनाज़िर बदल गये
लेकिन ये दिल का ज़ख़्म हरा था हरा रहा
लड़कों ने होस्टल में फ़क़त नाविलें पढ़ीं
दीवान-ए-मीर ताक़ के ऊपर धरा रहा
वो भी तो आज मेरे हरीफ़ों से जा मिले
जिसकी तरफ़ से मुझको बड़ा आसरा रहा
सड़कों पे आके वो भी मक़ासिद में बँट गए
कमरों में जिनके बीच बड़ा मशविरा रहा