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उसी एकांत में घर दो / अज्ञेय
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उसी एकांत में घर दो
जहाँ पर सभी आवें :
वही एकांत सच्चा है
जिसे सब छू सकें
मुझ को यही वर दो
उसी एकांत में घर दो
कि जिस में सभी आवें-
-मैं न आऊँ ।
नहीं मैं छू भी सकूँ जिस को
मुझे ही जो छुए, घेरे, समो ले ।
क्योंकि जो मुझ से छुआ जा सका-
मेरे स्पर्श से चटका-
नहीं है आसरा, वह छत्र कच्चा है :
वही एकांत सच्चा है
जिसे छूने मैं चलूँ तो पलट कर टूट जाऊँ ।
लौट कर फिर वहीं आऊँ
किंतु पाऊँ
जो उसे छू रहा है वह मैं नहीं हूँ :
सभी हैं वे । सभी : वह भी जो कि इस का बोध
मुझ तक ला सका ।
उसी एकांत में घर दो-
यही वर दो ।