भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उसी का रुख़ सदा पुरनूर होता / गिरधारी सिंह गहलोत
Kavita Kosh से
उसी का रुख़ सदा पुरनूर होता
बशर जो ज़ोश से भरपूर होता।
ये दुनिया दूर रहती है उसी से
अना में जो हमेशा चूर होता।
बिना मेहनत नहीं मिलता यहाँ कुछ
ज़माने का यही दस्तूर होता।
सहे ग़म वो सदा अपनों की खातिर
बशर कितना यहाँ मज़बूर होता।
दिखाता रास्ता बनकर मसीहा
वही फिर जा-ब-जा मशहूर होता।
लगा जो साजिशों में रात दिन है
समाजों का वही नासूर होता।
किसी का ख़्वाब हो जाता है पूरा
कहीं पर ख़्वाब चकनाचूर होता।
मुसीबत जब गले पड़ जाय कोई
ख़ुदा का ज़िक्र फिर मंजूर होता।
ग़रीबों को मुहब्बत जो मिले तो
'तुरंत' चेहरे पे उनके नूर होता।