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उसी घर में / आशुतोष दुबे

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मेरे आगे-आगे चल रही है
एक चीख़ गुपचुप-सी

अभी-अभी निकल कर आया हूँ
एक आत्मीय घर से
जहाँ पूछी सभी की कुशल-क्षेम
अपनी बताई
चाय पी, हँसा-बतियाया
और अच्छा लगा कि यहाँ आया

मेरे निकलने से पेश्तर
शायद वहीं से निकली है
यह गुपचुप-सी चीख़
मेरे आगे-आगे चलती हुई
मेरा पीछा करते हुए

और अब
मुझसे पहले
मेरे घर के दरवाज़े पर
दस्तक दे रही है ।