कई छोटी-बड़ी नदियाँ
मुझ में बह रही हैं
उफनती, गूँजती।
मैं सभी को झेलता
धरती-सा चुप हूँ
सभी गूँजों को अपने में समोये।
उसी से बने हैं पानी
जो धारे हैं मुझ को
और वह गूँज
जो आकाश-सी धारे हुए है
मुझे धारे हुए सारे पानियों को।
(1981)
कई छोटी-बड़ी नदियाँ
मुझ में बह रही हैं
उफनती, गूँजती।
मैं सभी को झेलता
धरती-सा चुप हूँ
सभी गूँजों को अपने में समोये।
उसी से बने हैं पानी
जो धारे हैं मुझ को
और वह गूँज
जो आकाश-सी धारे हुए है
मुझे धारे हुए सारे पानियों को।
(1981)