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उसे आवाज दे रही / कविता भट्ट
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दबी चिंगारी है; फिर भी उबाल आता है।
कैद मैना को आसमाँ का ख़्याल आता है।
सिलसिला ऊँची उड़ानों का यूँ तो उसकी;
जाने क्यों फिर घरौंदे का सवाल आता है।
नोंचे 'पर' उसके अंधेरे ने बेरहमी से बड़ी;
देख सूरज फिर उड़ने का मलाल आता है।
दोनों आँखों में वो तो दो 'ब्रह्माण्ड' रखती है;
उसकी राहों में मगर जग-जंजाल आता है।
उसे आवाज दे रही- अब नभ की नीलिमा;
जाने 'कविता' अब क्या चक्रचाल आता है।