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उसे जबसे पाया है, खोने का डर है / आलोक यादव

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उसे जबसे पाया है, खोने का डर है
बड़ी ही कठिन प्यार की रहगुज़र है

गई व्यर्थ उसको हँसाने की कोशिश
ख़ुदा जाने क्यों वो उदास इस क़दर है

फ़ना जिसपे दिल हो, नहीं कोई ऐसा
सही लाख तुझसे, कहाँ तू मगर है

अजब मोड़ हैरत भरा आ गया ये
उधर है ख़ुदा, इस तरफ़ हमसफ़र है

कहे हैं मुझे लोग अब जाने क्या-क्या
ये यारों की सुहबत का 'आलोक' असर है