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उसे दिल से भुला देना ज़रूरी हो गया है / जलील आली
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उसे दिल से भुला देना ज़रूरी हो गया है
ये झगड़ा ही मिटा देना ज़रूरी हो गया है
लहू बर्फ़ाब कर देगी थकन यकसानियत की
सो कुछ फ़ित्ने जगा देना ज़रूरी हो गया है
गिरा दे घर की दीवारें न शोरीदा-सरी में
हवा को रास्ता देना ज़रूरी हो गया है
बहुत शब के हवा-ख़्वाहों को अब खलने लगा हैं
दीयों की लौ घटा देना ज़रूरी हो गया है
भरम जाए के जाए राह पर आए न आए
उसे सब कुछ बता देना ज़रूरी हो गया है
मैं कहाँ हूँ कि जाँ हाज़िर किए देता हूँ लेकिन
वो कहते हैं अना देना ज़रूरी हो गया है
ये सर शानों पे अब इक बोझ की सूरत है ‘आली’
सर-ए-मक़्तल सदा देना ज़रूरी हो गया है