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उसे पूरा ही करके मानती हूँ / सिया सचदेव

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उसे पूरा ही करके मानती हूँ
मैं जो भी दिल में अपने ठानती हूँ

तुम्हारी हर अदा पहचानती हूँ
ज़ियादा तुमसे तुमको जानती हूँ

मुझे ख़ामोशियों से मत टटोलो
मैं आँखों की ज़बां पहचानती हूँ

मैं कर के अनसुनी खुद अपने दिल की
कहा तेरा हुआ सब मानती हूँ

ज़रा सी बात पर मुँह फेर लेना
ये आदत है तुम्हारी जानती हूँ

उम्मीदें ढाल के साँचे में दिल के
मैं अरमानों की मिट्टी छानती हूँ

सिवा तेरे नहीं मेरा कोई अब
तुम्ही को सिर्फ अपना मानती हूँ

ख़िज़ाँ गुलशन को मेरे छू न पाये
मनौती अपने रब से मानती हूँ