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उसे भी एक दिन / प्रेमशंकर शुक्ल
Kavita Kosh से
देखो न बड़ी झील !
वह अल्हड़ मछली
मेरी ही आँखों के सामने
पी गई है पूरा एक जल-गीत
और गीत के लय की
मेरे भीतर लहर उठ रही है लगातार
समझाओ न उसे बड़ी झील !
मानुस की भाषा में
न तैरा करे वह इस तरह
नहीं तो भाषा के शिकारी
मार खाएँगे उसे भी एक दिन !