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उसे मालूम है मैं सर-फिरा हूँ / फ़ज़ल ताबिश

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उसे मालूम है मैं सर-फिरा हूँ
मगर ख़ुश है के उसे को चाहता हूँ

ये बस्ती कब दरिंदों से थी खाली
मैं फिर भी ठीक लोगो में रहा हूँ

जो चाहे वो मुझे बे-दाम लेले
ख़रीदारों के हाथों कम बिका हूँ

तेरी चाहत बहाना है यक़ीं कर
बहर सूरत मैं ख़ुद को चाहता हूँ

ज़रा सुन बे-नियाज़-ए-लम्स सुन ले
मैं तुझ को छू के ख़दु को भूलता हूँ

कहाँ तोड़ा है मैंनै शाख़ से गुल
मैं शाख़-ए-गुल पे गुल को मानता हूँ