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उसे रब न कहूँ तो भी / आनंद कुमार द्विवेदी

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गर अब पुकारना हो, तो तुझको क्या कहूँ मैं
क्या अब भी दोस्त बोलूं या फिर खुदा कहूँ मैं

कुछ तेरी गली वाले कुछ मेरे शहर वाले
दोनों ही चाहते हैं, तुझे बेवफा कहूँ मैं

कुछ दिन से सोंचता हूँ तुझे भूल क्यों न जाऊं
इसे क्या कहूं, हिमाकत? या हौसला कहूं मैं

कभी जिस्म के सरारे कभी रूह की मुहब्बत
तुझे सिर्फ़ ख्याल समझूं या फलसफ़ा कहूँ मैं

अब भी तो तेरी खुशबू साँसों में महकती है
कभी गुल तुझे कहूं मैं कभी गुलशितां कहूं मैं

जिस शख्स ने अकेले इतने सबक दिए हों
उसे रब न कहूँ तो भी, रब की दुआ कहूँ मैं

उस दौर सा भरोसा ‘आनंद’ पर न करना
वो होश में कहाँ है उसे क्या बुरा कहूँ मैं