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उसे / नागेश पांडेय ‘संजय’
Kavita Kosh से
राम ! ओ मेरे
उसे
उत्कर्ष देना तुम .
जानता हूँ
उसे तुमने ही
बनाया है ,
पर उसे
तुमसे हमेशा
श्रेष्ठ पाया है .
मुझे इस
अनुराग की
जो भी सजा देना ,
किन्तु उसको
मत कभी
संघर्ष देना तुम .
न धन ,
जीवन की मगर -
मन संगिनी है वह .
द्रष्टि में मेरी
सदा
पूर्णागिनी है वह .
मुझे तो
जग के भले सब
कष्ट दे देना .
किन्तु जब
देना उसे
बस हर्ष देना तुम .
सहज है,
भावुक बहुत है
आत्मीया है .
सौख्यदा ,
सौभाग्यदा है ,
वन्दनीया है .
चाहता हूँ
सदा उसका
मानवर्धन हो ,
मुझ अकिंचन
को भले
अपकर्ष देना तुम .