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उस्तरेबाज़ / शैलेन्द्र चौहान

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उतरते हुए
नाई की दुकान से
कटे बालों के गर्दन से चिपके टुकड़े
रूमाल से झाड़ता/सोचने लगा...

इस प्रपंची समय में
वाक़ई कितना कठिन है
सृजन, एक जनाभिमुख कविता का

थोड़ा ही आगे बढ़ा और टकराया
सामने खड़े ट्रक से सीधा
डाले में लगे हुक और चेन की चोट से
धीरे-धीरे उभरने लगा
एक गूमड़ा माथे पर

क्यों नहीं चल पाता सड़क पर चौकस
गाहे-ब-गाहे क्यों सोचता हूँ
कविता के बारे में
होनी ही थी ग़फ़लत

क्यों बीच सड़क
खड़ा कर दिया ट्रक
इस बैनचो, हरामी ड्राइवर ने
जाहिल, गँवार स्साला!

मैं तो कॉमरेड हूँ
ऐसे गुस्सा नहीं होना
श्रम-जीवी वर्ग पर
दर्द था हल्का
पर बहुत बेमज़ा
एक हथेली
गूमड़े के स्पर्श से संवेदित
एक हिलती हुई बेतरतीब

निश्चित ही यह है
कवि होने का नतीजा

जिस वक़्त चला रहा था उस्तरा
नाई गर्दन पर
मैं सशंकित था

शक की सुई घूमी
नाई की ओर
जिस तरह उस्तरे के नीचे थी
मेरी गर्दन
ठीक उसी तरह कोई-न-कोई उस्तरा
अरबों-खरबों लोगों की गर्दनों पर
था मौजूद हर वक़्त

दुनिया का सबसे बड़ा उस्तरेबाज़
सफ़ाचट दाढ़ी-मूँछ और
भक्क उजले इस्त्री किए कपड़ों में
बैठा था व्हाइट हाउस में
तबला बजा रहा था वह अपनी उँगली से

चिकनी सफ़ाचट खोपड़ियों पर
काले मनुष्यों की

नाई के हाथ और मुँह से
रह-रह उठती बीड़ी की बू
टेबल पर सजा
झाग भरा ब्रश, उस्तरा,
कैंची, कंघी, ऑफ्टरशेव

हजामत के लिए बनी स्पेशल
सर-अटकाऊ कुर्सी
सीने पर कसा दाग़दार, मैला, सफ़ेद कपड़ा
रेडियो में तेज़ आवाज़ में गाता कोई
न-न-न-न ना-रे! ना-रे!
साड्डे नाल! हो, साड्डे नाल
रओगे तो ऐश करोगे

है नाई, एकदम मौजूँ चरित्र
कविता के लिए
लोग जूते, कील, टाई,
आलू, चूहे, चिम्पांजी
सारस, मोची, मजदूर
सेठों वगै़रह पर लिखते हैं
सफल कविताएँ
क्या बिगाड़ा है बेचारे
इस उस्तरा-उस्ताद ने?

कम्प्यूटरीकृत सेलून में
की-बोर्ड पर चलाते हुए उँगलियाँ
अनन्य भारतीय सुंदरियाँ
हो सकती होंगी जो
प्रबल दावेदार
मिस-वर्ल्ड और मिस-यूनिवर्स की
सौजन्य से मल्टीनेशनल कंपनियों के

सैट कर रही होंगी विभिन्न भड़कीले
हेयर-स्टाइल हॉलीवुड सितारों की तरह
निश्चित ही लिखी जा सकेगी वहाँ
एक बेहतरीन और मादक कविता

अनगिनत क़िस्में पराभव की
रूप-रंग, सुख-सुविधाएँ, कैरियर,
पुरस्कार, प्रोत्साहन
याचनाएँ घुटनेटेक सहाय्य की

झाँकने लगेंगे बगलें
अवसरानुकूल व्यवहार करने वाले कवि
एक बूढ़े प्रगतिवादी आलोचक की
सफे़द झक्क धोती के किनारे से

माथे से टकराएगी
एक क्रूर कविता अचानक
उभर आएँगे गूमड़े अनेक
कविता-शीर्षकों की तरह, यथा...

क्रूरता, युद्ध, उन्माद, धर्म, प्रेम, मूर्खता,
चरित्र, प्रकृति, समाज
इत्यादि... इत्यादि...