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उस आदमी का बज़्म में चर्चा न कीजिए / रमेश रंजक
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उस आदमी का बज़्म में चर्चा न कीजिए ।
जिस आदमी ने आग में खींचे हैं हाशिए ।।
उसने तो फूँक मार चरागाँ किए हैं गुल ।
गा-गा के राग हमने दीये फिर जला दिए ।।
आती हो जिसकी बात से सौदागरी की बू ।
उससे कहो कि दूसरा गाहक तलाशिए ।।
जो बात धारदार है वह रू-ब-रू कहो ।
वर्ना बिखेर देंगे ये ज़ालिम दुभाषिये ।।
झीना उजास सख़्त अन्धेरे के पार है ।
स्याही के इस पहाड़ के पत्थर तराशिए ।।
जिसकी जुबाँ को मिल गई सूरजमुखी लगन ।
उस देवता के सामने टुकड़े न डालिए ।।