भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उस एक पल के लिए / विजय चोरमारे / टीकम शेखावत
Kavita Kosh से
लौट आने की गुंजाइश
वैसे कम ही थी पहाड़ की चोटी से
अन्तिम शब्दों ने अचूक निशाना लगाया
पछताने की नहीं आए नौबत तुम पर
इसलिए लौटा था वापस
उससे भी परे
एक सपने की डोर का मिला आधार
जानता हूँ मैं
कि तुम सहज नहीं चली जाओगी
किसी की शरण
धैर्य नहीं खोओगी किसी भी मुश्किल पड़ाव पर
उम्मीद हैं कि किसी भावुक पल में
जब ज़िन्दगी जीने की थकान का एहसास होगा
तब हो जाओगी तुम व्याकुल
तब जानोगी विश्रान्ति के लिए
ज़रूरी चाहिए कुछ पल,
अपने हिस्से की जगह तुम्हारे लिए
उसी पल का है स्वप्न
वही है ज़िन्दगी का आधार
है ज़िन्दगी के ग्रीष्म की सारी तपन से मुक़ाबला
बस, उसी एक पल के लिए।
मूल मराठी से अनुवाद — टीकम शेखावत