भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उस का ख़याल आते ही मंज़र बदल गया / रउफ़ 'रज़ा'
Kavita Kosh से
उस का ख़याल आते ही मंज़र बदल गया
मतला सुना रहा था कि मक़्ता फिसल गया
बाज़ी लगी हुई थी उरूज ओ ज़वाल की
मैं आसमाँ-मिज़ाज़ ज़मीं पर मचल गया
चारों तरफ उदास सफेदी बिखर गई
वो आदमी तो शहर का मंज़र बदल गया
तुम ने जमालियत बहुत देर से पढ़ी
पत्थर से दिल लगाने का मौक़ा निकल गया
सारा मिज़ाज नूर था सारा ख़याल नूर
और इस के बा-वजूद शरारे उगल गया