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उस का ख़याल आते ही मंज़र बदल गया / रउफ़ 'रज़ा'

उस का ख़याल आते ही मंज़र बदल गया
मतला सुना रहा था कि मक़्ता फिसल गया

बाज़ी लगी हुई थी उरूज ओ ज़वाल की
मैं आसमाँ-मिज़ाज़ ज़मीं पर मचल गया

चारों तरफ उदास सफेदी बिखर गई
वो आदमी तो शहर का मंज़र बदल गया

तुम ने जमालियत बहुत देर से पढ़ी
पत्थर से दिल लगाने का मौक़ा निकल गया

सारा मिज़ाज नूर था सारा ख़याल नूर
और इस के बा-वजूद शरारे उगल गया